Chausath yogini temple : इस मंदिर की नकल कर अंग्रेजों ने बनाया था संसद भवन, जानें कहानी
Chausath yogini temple : देश के संविधान का सबसे बड़ा मंदिर – संसद, असल में एक मंदिर के रूप में ही तैयार किया गया है, इसकी वास्तुकला एक मंदिर से ही प्रेरित है। जी हां संसद को देखने के लिए विदेशों से लोग आते हैं वो इस बात से वाकिफ नहीं है कि संसद मध्य प्रदेश के एक मंदिर के डिजाइन से प्रेरित है। मध्य प्रदेश में एक ऐसा ही मंदिर है, जिससे संसद प्रेरित मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि देश की संसद का डिजायन इसी से प्रेरित होकर बनाया गया था। इस मंदिर को अगर कोई दूर से देखेगा तो उसे ये बिलकुल संसद भवन जैसा ही दिखेगा। आपको बता दें कि इस मंदिर को काफी रहस्यमयी माना जाता है। इसे प्राचीन की तंत्र-मंत्र विद्या का यूनिवर्सिटी भी कहा जाता है।
करीब 700 साल पहले बना था मंदिर || The temple was built about 700 years ago
ये मंदिर चम्बल के मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के मेतावली गांव में स्थित है। ये 64 योगिनी मंदिर है, ये मंदिर वृत्तीय आधार पर निर्मित है। आपको बता दें कि इसमें 64 कमरे हैं और बीच में एक खुला सा मंडप है। ये पूरी तरह से गोलाकार है और आने-जाने के लिए एक गेट की तरह रास्ता बना हुआ है। ये मंदिर चम्बल के घने जंगलों के बीच में एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है।
कुछ लोग इसे चौंसठ योगिनी का मंदिर कहते हैं तो वहीं कुछ तंत्र-मंत्र सिखाने की जगह, लेकिन ये भवन कभी देवताओं की संसद के रूप में रहा है। इसी स्ट्रक्चर को देखकर लुटियन ने दिल्ली में संसद भवन बनाया था। ये 64 योगिनी मंदिर को इकंतेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। 300 फीट ऊंची पहाड़ी पर बने इस मंदिर को 9वीं सदी में प्रतिहार वंश के राजाओं ने बनवाया था। ये मंदिर 170 फीट परिधि में फैला हुआ है और इसमें 100 से ज्यादा पत्थर के खंभे हैं। इस मंदिर में 64 कमरे हैं और हर कमरे में एक योगिनी की प्रतिमा और शिवलिंग स्थापित था। हालांकि देखरेख और निगरानी के अभाव में ज्यादातर प्रतिमाएं चोरी हो गई है। जबकि बाकी की म्यूजियम में रखी गई हैं।
तंत्र-मंत्र भी सिखाया जाता था || Tantra Mantra was also taught
ऐसा बताया जाता है कि पुराने समय में इस मंदिर में तंत्र-मंत्र की विद्य़ा सिखाई जाती थी। इसके अलावा कहा जाता है कि रात के समय देवताओं का इस मंदिर में निवास होता था और एक प्रकार से उनकी संसद यानि दरबार लगता था।
संसद भवन का डिजाइन इसी मंदिर से प्रेरित || The design of Parliament House was inspired by this temple.
देश की संसद को अंग्रेज सर एडविन लुटयंस और सर हरबर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया था। देश की संसद को 12 फरवरी 1921 को इसके निर्माण की नीव रखी गयी थी। ये भवन जनवरी 1927 में बनकर तैयार हुई थी। अधीन भारत के गवर्नर जनरल लार्ड इरविन ने इसका उदघाटन किया था। कड़ी मशक्कत के बाद 6 सालों में संसद बनकर तैयार हुई थी। ये विश्व के किसी भी देश में बेहतरीन वास्तुकला का एक शानदार नमूना है। ये लगभग 6 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस भवन में 12 दरवाजे हैं, और हल्के पीले रंग के 144 खंभे लाइन से लगे हैं। हर एक खंभे की ऊंचाई 27 फीट है। गौरतलब है कि इसके बारे में इतिहास में कहीं पर भी नहीं लिखा कि इसी मंदिर से संसद की वास्तुकला को तैयरा किया गया है।
इस मंदिर का निर्माण क्षत्रिय राजाओं के द्वारा कराया गया था। करीब 200 सीढ़ियों चढ़ने के बाद इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। ये मंदिर एक वृत्तीय आधार पर निर्मित है और इसमें 64 कमरे हैं। हर कमरे में एक-एक शिवलिंग है। मंदिर के मध्य में एक खुला हुआ मंडप है। इसमें एक विशाल शिवलिंग है। ये मंदिर 101 खंभो पर टिका है। इस मंदिर को ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।
एक तरफ जहां पर संसद की सुंदरता और उसके रख रखाव के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं तो वहीं इस मंदिर के लिए सरकार की तरफ से किसी तरह का कोई कदम नहीं लिया जा रहा है, चाहे फिर वो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें किसी का भी ध्यान इस मंदिर की तरफ नहीं गया है। आपको बता दें कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको टूटे-फूटे रास्तों का सहारा लेना पड़ता है और आपकी हालत खराब हो जाती है। ये मंदिर का अच्छे से रख-रखाव नहीं होने की वजह से हुआ है।