Islam in kerala : Hindus Population in kerala, Muslims Populations in kerala और Christian Population in Kerala लगभग बराबर हैं.
इन तीनों धर्मों की व्यापक मौजूदगी के पीछे Kerala में एक विस्तृत इतिहास खड़ा है.
केरल में हिंदू प्राचीन काल से ही हैं लेकिन इस्लाम यहां बाद में ( advent of islam in kerala ) आया.
इस्लाम की जड़ में हजारों मील की यात्रा है जो अरब देशों से होकर सदियों पहले पहुंची थी.
आज राज्य की अर्थव्यवस्था में केरल के मुस्लिम कारोबारियों का अहम योगदान है.
राज्य से बड़ी संख्या में लोग अरब देशों ( Kerala Muslims in Arab Countries ) में काम के लिए जाते रहते हैं.
अरब देशों ( Arab Countries relation with Kerala Muslims ) से केरल का इसी वजह से खास रिश्ता बन गया है.
इस रिश्ते के पीछे सदियों पुराना इतिहास भी मौजूद है.
आइए आज हम उसी इतिहास पर प्रकाश डालते हैं.
जानते हैं कि आखिर केरल में इस्लाम ( arrival of islam in kerala ) कैसे आया था.
केरल में इस्लाम पैगंबर मुहम्मद के वक्त अरब व्यापारियों के माध्यम से (CE 570 – CE 632) के बीच पहुंचा.
इस्लामिक काल से पहले से भी केरल का मध्य पूर्व के साथ एक बहुत ही प्राचीन संबंध था.
मुस्लिम मर्चेंट मलिक दीनार 7वीं सदी में केरल में ही आकर बस चुका था.
उसी ने यहां सबसे पहले इस्लाम से लोगों को परिचित कराया.
चेरामन जुमा मस्जिद जिसे भारत की पहली मस्जिद कहा जाता है वह कोडुंगलूर तालुक में स्थित है.
ऐसा कहा जाता है कि चेरा राजवंश का आखिरी राजा चेरामन पेरुमल था.
पेरुमल ने इस्लाम धर्म स्वीकार ( islam conversion in kerala ) कर लिया था.
वह पैगंबर मोहम्मद से मिलने भी गया था.
पेरुमल ने इस्लाम के प्रचार प्रसार में भी काफी सहयोग किया.
भारत और अरब देशों के बीच पैगंबर मोहम्मद के समय से पहले ही कारोबारी रिश्ते कायम हो चुके थे.
यहूदी और ईसाई देशों से अलग, अरब काफी पहले ही भारत के पश्चिमी घाट पर डेरा जमा चुके थे.
प्रमाण हैं कि अरब मूल के लोग 8वीं और 9वीं शताब्दी में केरल में बसने लगे थे.
हालांकि, कई जगह उल्लेख है कि पश्चिम एशिया से केरल में पहुंचने वालों में मुस्लिम कारोबारी पहले नहीं थे.
ऐसा यहां के मसालों की वजह से था.
यूरोपीय और अरब कारोबारियों को ये जगह भारी मुनाफे की वजह से लुभाती रही थी.
इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, अरब कारोबारियों के जहाज केरल में पहुंचने की परंपरा रही है.
ऐसा उल्लेख कई पुस्तकों में मिलता है.
ऐसा कहा गया है कि यहूदी और ईसाई वहां पहुंचने वाले पहले लोग थे.
मुस्लिम इनके बाद ही केरल पहुंचे थे.
हालांकि, बाद के वर्षों में केरल में यहूदी तो नहीं बढ़े लेकिन ईसाई-मुस्लिम यहां बढ़ते गए.
इसी के साथ बढ़ता गया उनका प्रभाव, जो आज भी राज्य में है.
केरल और मुस्लिम देशों के बीच कारोबार वक्त के साथ बढ़ता जा रहा था.
मुस्लिम कारोबारी भी इस राज्य में आने लगे थे.
कालीकट के राजा सभी का स्वागत कर रहे थे.
राजा ने इन कारोबारियों के स्थानीय महिलाओं से विवाह के लिए प्रेरित किया.
राजा की कोशिशों से ये मुस्लिम कारोबारी सैन्य बलों में काम करने के लिए भी तैयार हो गए.
यहां चेर राजवंश के चेरामन पेरुमल का जिक्र करना जरूरी है.
पेरुमल ने न सिर्फ इस्लाम धर्म कबूला बल्कि मक्का भी गए.
मालाबार इलाके के मुस्लिमों में अरब मुस्लिम मलिक दिनार को लेकर बेहद सम्मान का भाव था.
मलिक दिनार केरल में इस्लाम को आगे बढ़ाने के मकसद से आया था.
मलिक दीनार ने पहली मस्जिद करेंगनोर में बनाई.
इसके बाद मलिक दिनार ने क्विलोन, मडाई, कासरगौड, श्रीकांतपुरम, धर्मपट्टनम और चालियम में मस्जिदों को निर्मित कराया.
इब्न बतूता ने अपने जीवनकाल में 1342 से 1347 तक का काल केरल में बिताया.
उसने राज्य के अलग अलग हिस्सों में मुस्लिमों की जीवनशैली का उसने विवरण दिया है.
बतूता ने कालीकट से क्विलोन तक 10 दिनों तक यात्रा की.
उसने लिखा, ‘जहां ठहरने की जगहें थी वहां मुस्लिमों के घर थे.
इन घरों में मुस्लिम यात्रा ठहरते थे.
वह खाने पीने का सामान भी खरीदते थे.
राज्य में मुस्लिम सबसे सम्मानित लोग थे.
15वीं, 16वीं और 17वीं शताब्दी में मुस्लिम केरल में आर्थिक रूप से मजबूत हुए.
राज्य में इसी दौरान मुस्लिमों की संख्या भी तेजी से बढ़ी.
समाज में अस्पृश्यता का दंश झेल रहे कई लोग इस्लाम के प्रति आकर्षित हुए.
12वीं शताब्दी के एक समय केरल में मुस्लिम शासक भी रहा था.
केरल के मुस्लिमों को मप्पिला कहा जाता है.
ये सभी मलयालम भाषा ही बोलते हैं.
अरब संस्कृति के मिश्रण के साथ साथ मलयालम संस्कृति का पालन करते हैं.
केरल में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है.
पहले नंबर पर हिंदू धर्म है.
केरल में मुस्लिम आबादी 25 फीसदी से अधिक है.
यह संख्या देश के किसी भी राज्य से अधिक आंकड़ा है.
केरल में इस्लाम इस वक्त तेजी से बढ़ रहा है.
आजादी से पहले, वर्तमान केरल 3 सूबों को लेकर बना था जिनके नाम थे मालाबार, त्रावनकोर और कोचिन.
उत्तरी केरल में इस्लाम के फैलने सबसे अहम फैक्टर कोझिकोड में जमोरिन का संरक्षण रहा.
मुस्लिम राज्य में बड़ी ताकत के साथ उभरे थे और राजवंश भी उनका सम्मान करते थे.
अदालतों में उनका खासा प्रभाव दिखाई दे रहा था.
1498 में पुर्तगालियों ने यहां पर पहले से स्थापित कम्युनिटी की प्रगति की पड़ताल की.
हालांकि बाद के वर्षों में मुस्लिमों की आबादी धर्मांतरण के फलस्वरूप ही बढ़ी.
दक्षिणी मालाबार में ये धर्मांतरण मुख्यतः जातीय व्यवस्था की मार झेल रहे हिंदुओं में हुआ.
18 वीं शताब्दी के मध्य तक केरल के अधिकांश मुसलमान भूमिहीन मजदूर, गरीब मछुआरे और छोटे व्यापारी थे.
18वीं सदी में मैसूर राजवंश की चढ़ाई ने इसकी विपरीत स्थिति को जन्म दिया.
1766 के बाद मुस्लिम राज्य में प्रभावशाली हो चले थे.
बाकी काम ब्रिटिश हुकूमत के उदय और princely Hindu confederacy 1792 ने किया.
मुस्लिमों को एक बार फिर आर्थिक और सांस्कृतिक अधीनता में ला खड़ा किया.
सात समंदर पार के व्यापार के लिए मालाबार में एकक्षत्र राज अरब-मप्पिला गठजोड़ से एकदम सुरक्षित था.
लेकिन वो भी सिर्फ पुर्तगालियों के आगमन तक.
तब तक, मप्पिला अच्छी खासी संख्या में जमोरिन की नेवल फोर्स में मौजूद थे, जो कालीकट का राजा था.
जमोरिन का नेवल चीफ आमतौर पर मप्पिला कम्युनिटी से ही होता था.
उन्हें मरक्कर की पदवी दी गई होती थी.
केरल में इस्लाम से जुड़े पहले विवाद की शुरुआत भी हुई.
1498 ईस्वी में वास्को डि गामा के नेतृत्व में पुर्तगालियों ने राज्य में प्रवेश किया.
पुर्तगाली मन में इस्लाम बनाम ईसाईयत का विचार लेकर यूरोप से यहां पहुंचे थे.
यहां हिंदुओं का जिक्र करना भी आवश्यक हो जाता है.
हिंदुओं ने कई वर्षों से चले आ रहे व्यापार और अपने सहअस्तित्व के सिद्धांत की वजह से मुस्लिमों का ही साथ दिया था.
शुरुआत में पुर्तगाली व्यापारियों को जमोरिन से समझौते में कामयाबी मिली और उन्हें मप्पिला का समर्थन मिला.
हालांकि, हिंद महासागर के माध्यम से यूरोप के व्यापार मार्गों में अपने एकाधिकार को खोने के डर से मप्पीला व्यापारियों ने ज़मोरिन को पुर्तगालियों पर हमला करने के लिए राजी कर लिया और फिर उन्होंने उन व्यापारियों की हत्या कर दी जिन्हें वास्को डि गामा ने छोड़ा था.
इससे कालीकट और वहां लौटने वाले पुर्तगाली बेड़े के बीच युद्ध हुआ, जो कोचीन में अपने हिंदू प्रतिद्वंद्वी के साथ संबद्ध थे.
इस काल में पुर्तगाली फोर्स ने मसाले के व्यापार पर अपना एकक्षत्र राज स्थापित करने की कोशिश की और इसके लिए उन्होंने अरब और मध्य पूर्व के मुस्लिम कारोबारियों के खिलाफ हिंसक तरीके अपनाए.
अरब देशों से सदियों के रिश्ते से केरल की संस्कृति में अरब संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती है.
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट बताती है कि उत्तरी केरल के बड़े बाजारों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों ये अरब देशों के बाजार हों.
कालीकट का सबसे बड़ा मार्केट और यहां की शॉप खरीदारों से भरी रहती हैं. यही नहीं, यहां की जामा मस्जिद में बड़ी संख्या में लोग नमाज करने के लिए हर वक्त मौजूद रहते हैं.
मस्जिद में बनी ऊंची मीनार हो या अरबी शैली में दुकानों के लिखे हुए नाम, और तो और सड़क पर बुर्का पहनकर चलती महिलाएं, सब देखकर माहौल किसी अरब मुल्क जैसा ही लगता है.
केरल के उत्तरी हिस्से में हर घर से कोई न कोई शख्स खाड़ी और अरब देश में नौकरी करने जरूर गया हुआ है.
बीबीसी की रिपोर्ट में यहां की इकॉनमी को हिस्टोरियन और अरब-केरल मामलों के एक्सपर्ट नारायणन ‘पेट्रो डॉलर इकॉनमी’ मानते हैं.
केरल से अरब कमाने गए लोग वापस भी लौटते हैं. ऐसा कर वह अरब की संस्कृति को भी अपने साथ ले आते हैं.
ये परंपरा सैंकड़ों वर्षों से चल रही है. ऐसी स्थिति में लोगों का खाना-पीना और रहन-सहन काफी हद तक अरब मुल्क के लोगों जैसा हो जाता है.
केरल में ऐसे रेस्टोरेंट्स की भरमार है जहां अरबी व्यंजन परोसे जाते हैं. कालीकट शहर से बाहर ऐसे कई रेस्तरां हैं जहां के अरबी खाने लोगों की जुबां पर रहते हैं.
इन सब स्थितियों में उत्तरी केरल को अगर मिनी अरब कहा जाए तो कतई गलत नहीं होगा.
केरल निश्चित ही भारत का एक ऐसा राज्य है जहां सदियों की विरासत को आप साक्षात देख सकेंगे.
इस संस्कृति के पीछे कई कहानियां हैं जिसमें मसालों के कारोबार का इतिहास है, हैदर अली है, टीपू सुल्तान है, पुर्तगाली और वास्को डी गामा है और अरब संस्कृति तो है ही.
भारत में टूरिस्ट केरल की खूबसूरती देखने वहां जाते हैं लेकिन अगर आप वहां जाने की सोच रहे हैं तो इस संस्कृति को जानने समझने का विचार लेकर भी इस राज्य में प्रवेश करें.
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