Erotic Temples of India: सेक्स, करते सब हैं पर भारतीय बात करने में ऐसे हिचकिचाते हैं, मानो ये कोई प्राकृतिक प्रक्रिया न होकर कोई बीमारी हो. जिसके बारे में बात करने से ये छूत रोग की तरह बात करने वाले को लग जाएगा और वो बीमार हो जाएगा. हिन्दू धर्म में सेक्स यानी ‘काम’ के भी देवता हैं. फिर भी सेक्स के साथ ‘छी’ वाली भावना लगी हुई है. सेक्स पर खुलकर बात करना पाश्चात्य संस्कृति का असर कह दिया जाता है, जबकि ‘कामसूत्र’ भारत की ही देन है. आप सेक्स पर बात करें या न करें, लेकिन हमारे पूर्वज सेक्स के मामले में काफ़ी खुले विचारों वाले थे. सबूत है खजुराहो के मंदिर. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ़ खजुराहो ही नहीं, भारत में खजुराहो जैसे और भी मंदिर (Erotic Temples of India) हैं, जिनकी दीवारों पर हमारे पूर्वजों के खुले विचारों की तस्दीक मिलती है.
एक विराट रथ के आकार में बनाया गया है कोणार्क का सूर्य मंदिर. मान्यता है कि इसका निर्माण कृष्ण के पुत्र सांबा ने करवाया था. कोणार्क मंदिर में बनाई गई कामुक मू्र्तियों की बारीकियां आश्चर्यचकित करने वाली हैं.
इस मंदिर को जगन्नाथ राय और जगदीश जी भी कहा जाता है. उदयपुर स्थित इस मंदिर को 1651 मे बनवाया गया था. विष्णु देव को समर्पित ये मंदिर काले पत्थर और अन्य धातुओं से बनाया गया है. मंदिर की बाहरी दिवारों पर कामुक मूर्तियां बनाई गई हैं.
11वीं शताब्दी का ये हिन्दू मंदिर इंद्रेश्वर के नाम से जाना चाहता था. स्थानीय निवासी इसे ‘प्रेम का मंदिर’ कहते हैं. ये ‘पंचरथ’ शैली में बनाया गया है. इतिहासकारों के अनुसार, मध्य भारत के कई मंदिरों का वास्तुशिल्प इस मंदिर से प्रेरित है. देवी-देवताओं, रोज़मर्रा के काम-काज के अलावा इस मंदिर की दीवारों पर कामुक मूर्तियां भी बनाई गई हैं.
खजुराहो का मंदिर चंदेल वंश के राजाओं ने बनवाया था. यहां 85 मंदिर थे, जिनमें से सिर्फ़ 20 ही बचे हैं. खजुराहो के मंदिरों की बाहरी दीवारों की कामुक मूर्तियां विश्वप्रसिद्ध हैं और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की लिस्ट में शामिल हैं. कुछ शोधार्थी इन मूर्तियों को तांत्रिक सेक्स की मूर्तियां मानते हैं, तो कुछ कामसूत्र किताब के व्यू के अंश मानते हैं.
भगवान हरिहर को समर्पित है भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर, लिंगराज. लिंगराज का शाब्दिक अर्थ है, ‘लिंग के राजा’. इसे ललाटेडुकेश्वरी ने 617-657 ईं के बीच बनवाया था. इस मंदिर में कामसूत्र किताब के कई दृश्य भी हैं.
कहा जाता है कि दानवों ने इस मंदिर का निर्माण सिर्फ़ एक रात में किया था. यही कारण है कि इस मंदिर के बाहर कामुक मूर्तियां बनी हैं. महाशिवरात्रि के दिन यहां भव्य मेला लगता है.
बेंगलुरू से 350 किलोमीटर की दूरी पर है हम्पी और यहीं हैं वीरुपक्ष मंदिर. ये मंदिर, वीरुपक्ष (शिव के ही एक रूप) को समर्पति है. इस मंदिर को विजयनगर साम्राज्य के देव राजा 2 के एक सरदार, लक्कन डंडेशा ने बनवाया था. इस मंदिर में आज भी पूजा होती है.
इस स्थान पर कुल 4 मंदिर हैं. इतिहासकारों के अनुसार 1100 ई. में इसका निर्माण करवाया गया था. इस मंदिर के बाहर और अंदर मिथून और कामसूत्र किताब के दृश्य बनवाए गए हैं. कहा जाता है कि जिस राजा ने इसे बनवाया था, वो तंत्र साधना भी करता था.
तीर्थांकर आदिनाथ को समर्पित, ये जैन मंदिर राजस्थान के पाली ज़िले का मुख्य आकर्षण है. इसे धर्म शाह ने बनवाया था. संगमरमर से बने इस मंदिर में 1400 स्तंभ हैं. यहां कई कामोत्तेजक मूर्तियां हैं.
सोलंकी वंश के भीमदेव 1 ने ये मंदिर बनवाया था. मंदिर के बाहरी दीवारों पर सूर्य उकेरे गए हैं, वो भी कुछ यूं कि Equinox(विषुव) के समय सूर्य की सबसे पहली किरण इन सूर्यों पर पड़ती है. इस दिलचस्प बनावट के अलावा यहां भी संभोग करते हुए पुरुष-स्त्री की आकृतियां बनाई गई हैं.
देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में लगभग हज़ार साल पुराना देवी नंदा का मंदिर है. इस मंदिर में भी कुछ कामुक मूर्तियां उकेरी गई हैं. 12 साल में एक बार यहां नंदा देवी राजजात (एक यात्रा) निकाली जाती है.
1070 ई. के आस-पास बनवाया गया ये मंदिर अब जर्जर स्थिति में है. इस मंदिर की खिड़कियों पर बेहद ख़ूबसूरत कारीगरी की गई है. शिव, ब्रह्मा, विष्णु की मूर्तियों के अलावा यहां भी कामसूत्र किताब के कुछ दृश्य और पाठ उकेरे गए हैं.
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