Balsamand Lake – जोधपुर में Balsamand Lake and Garden घूमने लायक जगह है. जोधपुर में बालसमंद झील एक दर्शनीय स्थल है. काफी पर्यटक यहां आते हैं. यह जोधपुर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इसे 1159 में बालाक राव परिहार ने बनवाया था. यह कृत्रिम झील है. तीन तरफ पहाड़ियों से घिरी यह झील उम्मैद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है. झील हरे-भरे बगीचों से घिरी हुई है जिसमें आम, पपीता, अनार, अमरूद और बेर जैसे पेड़ों के घर हैं. सियार और मोर जैसे पशु और पक्षी आपको यहां खूब मिलेंगे. अगर आप शहर के शोर से दूर कुछ पल शांति से, अपनों के बीच या सिर्फ अपने साथ बिताना चाहते हैं तो यकीन मानिए Balsamand Lake and Garden आप ही के लिए है.
बालसमंद झील की यात्रा के दौरान आप बालसमंद झील गार्डन में घूम सकते हैं जो आम, अनार, बेर, पपीता और केला व कई प्रकार के पेड़ों के बगीचों से घिरा हुआ है, इसके अलावा जलाशय से बगीचे तक पानी एक सुंदर झरने के माध्यम से पहुंचता है और पर्यटकों को आकर्षक दृश्य देखने को मिलता है.
जोधपुर में बालसमंद झील के यात्रा के साथ-साथ घुड़सवारी, गांव सफारी भी लगभग हर पर्यटक की लोकप्रिय पसंद बनी हुई है जो इस स्थान को एक अलग, असाधारण स्थान के रूप में चिह्नित करता है. तो आप भी बालसमंद झील के यात्रा के साथ-साथ घुड़सवारी या गांव सफारी जेसी रोमांचक गतिविधियों का लुफ्त उठा सकते हैं.
बालसमंद झील पर्यटक स्थल के साथ-साथ एक लोकप्रिय सनसेट पॉइंट भी है जहां से सनसेट देखना स्थानीय लोगो और पर्यटकों के लिए लोकप्रिय बना हुआ है तो आप भी अपनी जोधपुर की यात्रा के दोरान शाम के समय बालसमंद झीले के किनारे से सनसेट का सुन्दर अनुभव प्राप्त कर सकते हैं.
यहां विराजमान है भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग
इस झील का निर्माण 1159 ईसवीं मे परिहार शासकों द्वारा किया गया था. ईन्द्रा प्रतिहार के उत्पति की जानकारी बालसमंद झील से भी मिलती है. बालसमंद झील का निर्माण राव शुरशेन प्रतिहार जी ने करवाया उस समय इस झील का कोई खास नाम दिया ही नहीं गया था. झील का निर्माण पूरा हुआ ही था और उस समय बारिश का मौसम था, लेकिन उस साल मारवाड में बारिश हुई नहीं तो राज्य में अकाल की स्थिति पैदा हो गयी तो प्रतिहार शासक राव जी और उनके कुछ साथी काशी गए पंडितों और विद्वानों से इस समस्या का हल करवाने के लिए कहा तो पंडितो ने कहा कि झील के निर्माण करते समय भारी चूक रही है इसलिए बारिश नहीं हो रही है. राव जी ने पंडितो से कहा कि इस समस्या का समाधन क्या होगा तो पंडितों ने कहा कि झील में एक यज्ञ किया जाए और यज्ञ पूर्ण होने पर राजकुमार की उसमें आहुति दी जाए. राव इस बात को सुनकर हैरान हो गए और वापस मंडोर मारवाड़ आ गए. इस बात के लिये दरबार बुलाया गया और इस बात पर बहस के लिये किसी ने कुछ भी नहीं कहा तब भरे दरबार में राणी ( राव की पत्नी ) मारवाड की महारानी ने कहा की अगर जनता ही नहीं रहेगी तो राजकुमार और राजपरिवार का क्या महत्व होगा तब राव ने निर्णय लिया और यज्ञ की शुरुआत का आदेश दिया यज्ञ पंडितो के कहे अनुसार पूर्ण हुआ तब राजकुमार की आहुति दी.
जिस राजकुमार की आहुति दी उसका नाम बुध प्रतिहार था. यज्ञ पूर्ण होते ही आसमान में धूल भरी आंधियां चली और तेज गर्जना के साथ बारिश हुई और झील लबालब पानी से भर आई तब किसी को झील में एक टोकरी तैरते हुई दिखाई दी तो उसको राव ने मंगवाया तो वो वही टोकरी थी जिसमें राजकुमार को यज्ञ के समय अंदर सुलाया गया था और उस टोकरी में राजकुमार जिन्दा था तब राव राजकुमार को शुभ मुहर्त के हिसाब से महल में लाये और पुरे मंडोर (मारवाड़) ने उत्सव मनाया गया और राजकुमार को भगवान इंद्र की पद्धवि दी गयी. राजकुमार का नाम बुध से इंद्र हुआ और आगे चलकर इनके वंशज इंद्रा प्रतिहार कहलाये और झील का नाम उसके बाद में बालसमंद पड़ा.
जोधपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का महीना माना जाता है. जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कम से कम 3-5 दिन का समय जरूर रखें.
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