ghost village. जैसलमेर के पश्चिम में 18 किलोमीटर दूर कुलधरा नाम का एक ऐसा गांव है जहां क़रीब दो शताब्दियों से मरघट जैसी शांति है. रात की बात तो दूर दिन में भी कोई अकेला इंसान खंडहर बन चुके घरों में घुसने से डरता है. ऐसी मान्यता है कि पालीवाल ब्राह्मणों ने कुलधरा और जैसलमेर के चारों और 120 किलोमीटर इलाक़े में फैले 83 अन्य गांवों को लगभग 500 सालों तक आबाद किया था. इन पालीवाल ब्राह्मणों ने 1825 में गांव छोड़ते समय शाप दिया था कि इस जगह जो भी बसेगा नष्ट हो जाएगा.
कुलधारा गांव एक खाली गांव है जिसमें कोई नहींं रहता और ये करीब 200 साल से वीरान पड़ा है . यहां पर जो गाइड था उसके अनुसार तो ये कहानी थी कि यहां पर राजा का काफिला गुजरा तो उसने यहां के लोगो से धन की मांग की . यहां के लोग उतने धन की मांग पूरी करने में असमर्थ थे और रातोरात पंचायत बैठी जिसने एक खतरनाक फैसला लिया और अपने बसे बसाये गांव को छोडकर हजारो लोग अपनी गृहस्थी सब ऐसे ही छोड़कर यहां से चले गये और पाली के पास जाकर बसे.
मलूटी : एक ऐसा गांव, जहां किसान ने बनवाए थे 108 मंदिर
गांव में सब कुछ खंडहर है केवल एक मंदिर और तीन चार मकानों के जिन्हे शायद सरकार ने पुनर्निमाण कराया है . कहते हैं कि जैसलमेर से 18 किलोमीटर दूर इस गांव को पूरे वैज्ञानिक तरीके से बसाया गया था . कुलधारा में करीब 6 सौ घर थे और सभी ब्राहमण थे . यही नहीं ये भी कहा जाता है कि यहां पर उस पलायन में आसपास में बसे 84 गांव खाली हुए थे जिनमें से कुलधारा सबसे बड़ा था .
वैज्ञानिकता ये थी कि ईंट पत्थर से बने इस गांव के घरो में गर्मी का अहसास नहीं होता था . घरो को ऐसा बनाया गया था कि हवा सीधे हर घर से होकर गुजरती थी . यहां पर भरी गर्मी में आने वाले 50 डिग्री में भी यहां के घरो में शीतलता का अनुभव करते हैं . तमाम घर झरोखो के जरिये एक दूसरे से जुडे हुए थे जिससे कोई भी बात एक कोने से दूसरे कोने तक बडे आराम से पहुंचाई जा सकती थी . हर घर में चारो ओर कमरे और बीच में दालान है . कमरो के नीचे तहखाने भी बनाये गये थे जो शायद और अधिक शीतलता के लिये थे.
यूपी में है दामादों का गांव, जहां लड़की नहीं दामाद किए जाते हैं विदा
आजकल इस गांव को भूतिया कहा जाता है और यहां पर रात को आने की मनाही है . दिन में ये पर्यटको से भरा रहता है . यहां जाने वाले ज्यादातर पर्यटक पैकेज में आते हैं और पैकेज में उन्हे कुलधारा गांव जरूर दिखाया जाता है.
ऐसा बताते हैं कि यहां के निवासी ब्राहमण बहुत ही उदयमी थे और उन्होंने बरसात के पानी को भी बढ़िया तरह से रोकने का तरीका बनाया था. जिससे कि रेत उसे सोखे नहीं . वह यहां पर खेती और पशुपालन करते थे . उस समय में यहां पर हरियाली और धन की कमी नहीं थी पर जैसा कि कई किवदंतिया हैं यहां के उजड़ने के बारे में तो उनमें से एक ये भी है कि दीवान सालिम सिंह नाम के किसी दीवान की बुरी नजर यहां की किसी लड़की पर पड़ गयी और उसने गांव वालो को उस लडकी को सौंप देने या फिर अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा . गांव वालो ने बेटी को देना मंजूर नहीं किया और यहां से एक ही रात में गांव खाली कर दिया .
यहां से गांव खाली करते समय उन्होने श्राप दिया ऐसा बताते हैं कि ये गांव कभी दोबारा नहीं बसेगा . यहां पर ऐसा कहा जाता है कि कई लोगों ने बसने की कोशिश की पर वह भाग गये . यही नहीं कई लोगों का तो पता ही नहीं चला.
पहाड़ का कड़वा सचः उत्तराखंड में कैसे रुकेगा पलायन?
बस तबसे ये खंडहर पडे हैं जिन्हे बाद में सरकार ने पर्यटन स्थल में तब्दील कर दिया . यहां पर सोना या दौलत दबे होने की भी अफवाह है इसलिये जगह जगह गढढे खुदे मिलते हैं जो कि लोग दौलत के लालच में खोद देते हैं . यहां से 16 किलोमीटर पर खाबा फोर्ट है . रास्ते में एक दो गांव और भी पडते हैं . इनमें से एक गांव में बहुत बडी दो टंकी बनायी हुई थी. जिनमें से एक जानवरो के पानी पीने और कपडे़ आदि धोने के लिये और दूसरी सिर्फ पानी पीने की थी पर ये टंकी जमीन पर ही बनी हुई थी.
जब खाबा फोर्ट आया तो दूर से ही दिखना शुरू हो गया था पर जब रास्ता सीधा सामने से बंद होकर उल्टे हाथ को जाने लगा और दो किलोमीटर का बोर्ड आया तो बडा अचम्भा हुआ . उल्टे हाथ को जाकर फिर एक पहाडी को काटकर रास्ता बनाया गया है औ वहां पर खाबा फोर्ट बना हुआ है . वैसे खाबा फोर्ट के केवल खंडहर ही बचे हैं जिन्हें अब पुनर्निमाण करके बनाया जा रहा है . नीचे गहराई में गांव के खंडहर पडे़ हैं पर कुछ घर भी दिखायी देते हैं . दूर काफी हरियाली थी . यहां पर भी दस रुपये का टिकट था . यहां से नजारा बढिया दिखता है . ये खाबा गांव भी उन्ही पालीवाल ब्राहमणो का गांव था जिसे वे छोडकर चले गये .
यहां पास ही में खाबा डेजर्ट कैम्प बना हुआ है . कैम्प में टैंट लगे होते हैं और रेत अंदर तक जमा हुआ है. वहां पर पहले से मौजूद लोग प्रवासी भारतीय थे और अपने लोकल परिजनो के साथ गुजरात से यहां पर घूमने के लिये अपनी कार में आये हुए थे . सभी मुस्लिम थे पर आप उन्हे देखकर कह नहीं सकते . उनकी मुझसे बात हुई और उन्होने मेरे बारे में काफी जानकारी ली. टैंट में रूकने का किराया 5000 है एक रात का जबकि हट का 6000 है .यहां पर फिल्म एयरलिफट की शूटिंग इसी इलाके में भी हुई थी और अक्षय कुमार इसी होटल में रूके थे . उनका फोटो भी यहां पर लगा हुआ है.
जैसलमेर से खाबा फोर्ट 32 किलोमीटर दूर पड़ता है, और यहां तक निजी वाहन और कैब द्वारा ही जाया जा सकता है. कुलधरा से खाबा की दूरी 15 किलोमीटर है और सड़क अच्छी हालत में है जगह जगह लगे साइन बोर्ड आपको खाबा फोर्ट पहुंचने में मदद करते है.
Maha Kumbh Mela in 2025 : कुंभ मेला हर 3 साल, अर्ध कुंभ मेला हर… Read More
Ujjain Mahakal Bhasma Aarti Darshan : उज्जैन महाकाल भस्म आरती दर्शन के साथ दिव्य आनंद… Read More
Kulgam Travel Blog : कुलगाम शब्द का अर्थ है "कुल" जिसका अर्थ है "संपूर्ण" और… Read More
Vastu Tips For Glass Items : बहुत से लोग अपने रहने की जगह को सजाने… Read More
Travel Tips For Women : महिलाओं के लिए यात्रा करना मज़ेदार और सशक्त बनाने वाला… Read More
Kishtwar Tourist Places : किश्तवाड़ एक फेमस हिल स्टेशन है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध… Read More