Lansdowne Trip-लैंसडाउन, उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल में स्थित है. इस जगह को वास्तव में कालूडांडा कहते है. डांडा गढ़वाल की पहाड़ी का नाम है. लैंसडाउन का गठन भारत में तबके ब्रिटिश वायसरॉय लॉर्ड लैंसडाउन (1888-1894) के नाम पर 1887 में (Lord Lansdowne in 1887) हुआ. 1901 तक इस शहर की आबादी 3943 थी. लैंसडाउन को अंग्रेज हुकूमत ने गढ़वाल राइफल्स के ट्रेनिंग सेंटर (Training center of the Garhwal Rifles) के तौर पर विकसित किया था. आज लैंसडाउन में भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स की रेजिमेंटल ट्रेनिंग सेंटर है. लैंसडाउन, ब्रिटिश काल से ही छुट्टियों के लिए हिल स्टेशन के तौर पर मशहूर रहा है. लैंसडाउन, सड़क मार्ग से अच्छी तरह से कनेक्टेड है. लैंसडाउन, उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले (Pauri Garhwal district of Uttarakhand) में स्थित है.
यहां आपको हर दूसरे पल में मौसम बदलते हुए देखने को मिलेगा. कभी यहां सूरज होता है तो कभी आपको यहां बहुत सारे बादल अपनी और आते हुए दिखेंगे. यहां का मौसम हमेशा ही शानदार रहता है. यहां दिल्ली और NCR से ढेरों पर्यटक यहां अपनी छुट्टियां शांति से बिताने आते हैं.
लैंसडाउन और उसके आसपास कई घूमने की जगहें हैं, उनमें से एक कण्वाश्रम है, जो एक प्रसिद्ध आश्रम है. यह आश्रम सुंदर हरे भरे जंगलों से घिरा हुआ है और इसके पास मालिनी नदी बहती है. एक हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोकप्रिय ऋषि विश्वामित्र ने इस स्थान पर ध्यान किया था.
यहां एक और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तारकेश्वर महादेव मंदिर है, जो हिंदू भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर समुद्र तल से 2092 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. हर साल, बड़ी संख्या में भक्त देवता की पूजा करने के लिए इस मंदिर में आते हैं.
लैंसडाउन गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल वॉर मेमोरियल और गढ़वाली मेस के लिए भी मशहूर है, जो प्रमुख टूरिस्ट अट्रेक्शन में गिना जाता है. युद्ध स्मारक की स्थापना 11 नवंबर, 1923 को भारत के तत्कालीन कमांडर इन चीफ, ट्रेंट के लॉर्ड रॉलिन्सन द्वारा की गई थी.
गढ़वाली मेस 1888 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित सबसे पुरानी इमारतों में से एक है. इस मेस की गिनती अब एशिया के प्रमुख म्यूज़ियम में की जाती है.
लैंसडाउन का एक अन्य फेमस आकर्षण भुल्ला ताल, यह एक सुंदर झील है. इस झील का नाम गढ़वाली शब्द ‘भुल्ला’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘छोटा भाई. यात्री इस झील में बोटिंग और पैडलिंग जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं.
भुल्ला ताल में एक चिल्ड्रन पार्क, एक बांस का मचान और सुंदर फव्वारे भी हैं. रॉयल इंजीनियर्स के कर्नल ए.एच.बी ह्यूम द्वारा 1895 में निर्मित सेंट मैरी चर्च भी देखने लायक जगह है. रेजिमेंटलम्यूज़ियम, दुर्गा देवी मंदिर, सेंट जॉन चर्च, हवाघर, और टिप-इन-टॉप गंतव्य के कुछ अन्य फेमस टूरिस्ट प्लेस है.
कण्वाश्रम हरे भरे जंगलों और पहाड़ियों के बीच स्थित लैंसडाउन में घूमने लायक जगहों में से एक है. इस आश्रम के पास मालिनी नदी बहती है, जो इस स्थान की सुंदरता को और बढ़ा देती है.आश्रम मेडिटेशन के लिए एक परफ्केट जगह है. सहस्त्रधारा वाटरफॉल कण्वाश्रम के पास है.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्रसिद्ध ऋषि, ऋषि विश्वामित्र ने एक बार इस स्थान पर ध्यान किया था. कहानी में कहा गया है कि ऋषि के गहन ध्यान ने स्वर्ग के भगवान इंद्र को भयभीत कर दिया इसलिए, उन्होंने ऋषि को परेशान करने के लिए मेनका नामक एक दिव्य युवती को भेजा.
मेनका विश्वामित्र का ध्यान भंग करने में सफल रही, उनके मिलन से एक कन्या उत्पन्न हुई और उसका नाम शकुंतला रखा गया. बाद में मेनका ने बालक को कण्व ऋषि की देखरेख में इसी आश्रम में छोड़ दिया, जब शकुंतला बड़ी हुई तो उसका विवाह राजा दुष्यंत से हुआ, जो उस समय हस्तिनापुर के शासक थे. कुछ सालों के बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया और उसका नाम भरत रखा. ऐसा माना जाता है कि भारत जिसे अक्सर भारत या भारतवर्ष के रूप में माना जाता है का नाम उनके नाम पर रखा गया था.
तारकेश्वर महादेव मंदिर लैंसडाउन में समुद्र तल से 2092 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है. मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हर साल कई भक्त यहां महादेव का दर्शन करने आते हैं.
हिंदू फेस्टिवल, महा शिवरात्रि हर साल बहुत धूमधाम के साथ मनाई जाती है. मंदिर परिसर हरे भरे देवदार, ओक और देवदार के जंगलों से घिरा हुआ है. कई छोटे-छोटे लगातार बहने वाले पानी के कुंड हैं.
गढ़वाल राइफल्स रेजिमेंटल वॉर मेमोरियल लैंसडाउन के मशहूर पर्यटक जगहों में गिना जाता है. यह म्यूज़ियम 11 नवंबर 1923 को भारत के तत्कालीन कमांडर इन चीफ, ट्रेंट के लॉर्ड रॉलिन्सन द्वारा स्थापित किया गया था. यह लैंसडाउन के परेड ग्राउंड में स्थित है. टूरिस्ट इस म्यूज़ियम से भारतीय सेना के इतिहास के बारे में अधिक जान सकते हैं.
गढवाली मैस, लैंसडाउन की प्राचीन विरासत है. 1888 में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई यह इमारत 1892 में मैस के रूप में परिवर्तित की गई. यह मैस भारतीय सैन्य की धरोहर का प्रतीक है, और आज एशिया के प्रमुख म्यूज़ियमों की श्रेणी में शामिल है. इस म्यूज़ियम में जंगली जानवर की खाल का ढेर है. म्यूज़ियम में मौजूद डायल नंदादेवी, चौखंबा, कामेट नामक हिमालय की अन्य कई पर्वतों की दिशा दिखाता है.
भुल्ला ताल, लैंसडाउन में घूमने के लिए सबसे फेमस जगहों में से एक है. यह झील गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों को समर्पित है क्योंकि उन्होंने झील के बनाने में मदद की थी. इस झील का नाम गढ़वाली शब्द ‘भुल्ला’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘छोटा भाई. यहां बोटिंग और पैडलिंग जैसी एक्टिविटी का मजा लिया जा सकता है. झील के परिसर में एक पार्क, बांस मचान और कई खूबसूरत फव्वारे भी हैं.
रेजिमेंटल म्यूज़ियम लैंसडाउन का एक टूरिस्ट प्लेस जिसका नाम मशहूर व्यक्ति दरबन सिंह नेगी के नाम पर रखा गया है. वह बहादुरी के लिए सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड विक्टोरिया क्रॉस लेने वाले भारतीयों में से एक थे. म्यूज़ियम का उद्घाटन वर्ष 1983 में किया गया था.
दुर्गा देवी मंदिर लैंसडाउन से लगभग 25 किमी की दूरी पर स्थित एक मंदिर है. यह नदी के तट पर स्थित है और देवी दुर्गा को समर्पित है. इस मंदिर को देश के सबसे पुराने सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है.
हवाघर लैंसडाउन में स्थित एक पर्यटन स्थल है. यह जगह नेचर की खूबसूरती को पास से देखने के लिए सबसे अच्छी जगह है. अगर फोटो खिंचवाने के शौकीन है तो ये जगह आपके लिए ही है. यहां आपके फोटो भी बहुत अच्छे आएंगे इसलिए जब आप लैंसडाउन आएं तो इस जगह को भी मिस नहीं करना है. लैंसडाउन से यह जगह 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
टिप और टॉप टूरिस्ट के बीच बहुत फेमस जगह है. इसके साथ ही लैंसडाउन में इस जगह पर सबसे ज्यादा टूरिस्ट देखे जाते हैं. टिप एन टॉप नाम से ही पता चलता है कि यह लैंसडाउन में सबसे ऊंची जगहों में से एक है. यहां से आप पूरा लैंसडाउन देख सकते हो. यहां एक रेस्टोरेंट भी है जहां खाने का भी मज़ा उठा सकते हो.
लैंसडाउन प्रमुख भारतीय शहरों से वाय एयर, ट्रेन और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है. देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा और कोटद्वार रेलवे स्टेशन लैंसडाउन से कुछ ही दूरी पर हैं.
इस खूबसूरत जगह को देखने का सबसे अच्छा समय मार्च से नवंबर तक है, क्योंकि इस दौरान मौसम अनुकूल रहता है।
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