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खत्म हो रही है वो Indian Tribe, जहाँ है बीवियां बदलने का रिवाज़

Indian Tribe : भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में सिंधु नदी से लगे हुए एक गांव में Indian Tribe ड्रोकपा जनजाति के लोग रहते हैं। ये एक ऐसी जनजाति है जो आज भी अपनी पुरानी परम्पराओं से जुड़ी हुई है। Indian Tribe ड्रोकपा लद्दाख के दाहनु, बीमा, गारकोन, दारचिक, बटालिक, शारचे और चुलिदान इलाकों में पाए जाते हैं। हो सकता है आपको विश्वास ना हो लेकिन इस जनजाति में पत्नियां बदली जाती हैं। ये शुरू से इनके रिवाज़ में शामिल है। जबकि ये समुदाय  कहीं सुदूर जंगलों में या सात समंदर पार नहीं बल्कि हमारे भारत देश में ही स्थित है। इस जनजाति को हिमालय के आर्यन के नाम से भी जाना जाता है।

आपस में बदलते हैं एक दूसरे की पत्नियां || They exchange each other’s wives

इस जनजाति के लोग एक दूसरे से अपनी पत्नियां बदलते हैं। सेक्स संबंधों को लेकर ये लोग खुले मिजाज़ के होते हैं। आधुनिकता से दूर होने के बावजूद भी ये समुदाय सेक्स के मामले में प्रगतिशील है। ये जनजाति ख़ुद को दुनिया के आखिरी बचे हुए शुद्ध आर्यों में से मानते हैं।

जीवनयापन के लिए करते हैं खेती- किसानी || Do farming for livelihood

जिंदगी जीने के लिए इनमें से ज्यादातर लोग किसान के रूप में कार्य करते हैं। फल-सब्जियां उगाते हैं। इससे हरे-भरे खेतों की शान बनी रहती है। ऐसा कर ये खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। ड्रोकपा समुदाय के लोग अपनी पैदावार को बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं।

बहुविवाह का है प्रचलन || Polygamy is prevalent

ड्रोकपा जनजाति के लोगों में बहुविवाह का प्रचलन पाया जाता है। इनके समुदाय के एक महिला कई पुरुषों के विवाह करती है। अब ये प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। इस समुदाय में विवाह से पूर्व सेक्स संबंधों को भी स्वीकार्यता है। ड्रोकपा समुदाय में चार गाँवों से बाहर विवाह करने की अनुमति नहीं है। अपनी नस्लीय शुद्धता को बनाये रखने के लिए वो ऐसा करते हैं। ये लोग अपने समाज के अंदर तक ही सीमित रहते हैं तथा बाहरी दुनिया से परहेज करते हैं।

भारत का एक आदिवासी समुदाय || A tribal community in India

जम्मू और कश्मीर के ब्रोकपा जनजातीय समुदाय मुख्य रूप से द्रास (लद्दास के रूप में द्रास के रूप में भी बसा) घाटी में कई स्थानों पर केंद्रित थे। इसके अलावा, इस आदिवासी समुदाय को पूरे भारत के विभिन्न हिस्सों में बसाया गया है। ड्रोकपा आदिवासी समुदाय को भारतीय क्षेत्र की अनुसूचित जनजातियों में से एक ही माना जाता है। ड्रोकपा आदिवासी समुदाय की उत्पत्ति के पीछे एक समृद्ध इतिहास भी मिला है। मानवविज्ञानी के अनुसार, इन जनजातियों को गिलगित क्षेत्र में चिल्हास के डेरों की संतान माना जाता है। गैलसन के मुताबिक एक मिथक माना जाता है कि उनका समुदाय सम्राट सिकंदर के सैनिकों का वशंज हैं। इसी के साथ ही साथ पाकिस्तान की कलाश जाति, हिमाचल प्रदेश में मलाणा और बड़ा भंगाल इलाके के लोग भी कुछ ऐसा ही दावा करते हैं।

संबंधों में दिखावा होता है || Pretending is a part of relationships

प्रेम के सार्वजनिक दिखावे पर ये कबीला समुदाय यकीन रखता है। इस क्रिया को अभद्र समझते हुए, प्रशासन ने पत्नियों की अदला-बदली और सार्वजनिक प्रेम प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा दिया था। क्योंकि इसे असभ्य समाज का बर्ताव माना गया था। लेकिन इस वजह से ड्रोकपा जनजाति ने बाहरी लोगों के सामने अपने इस नियम को करना बंद कर दिया। ड्रोकपा आसान और उनमुक्त जीवन जीते हैं। इनमें से ज्यादातर किसान हैं।

ये ख़ुद को दुनिया के आख़िरी शुद्ध आर्य मानते हैं || They consider themselves to be the last pure Aryans in the world

ऐसा माना जाता है कि शुद्ध आर्य के जो कुछ समुदाय बचे रह गए हैं, उनमें से ही ड्रोकपा भी है। लद्दाख में इस कबीले का आगमन कैसे हुआ, इसको लेकर अलग-अलग किस्से बताएं जाते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ड्रोकपा का संबंध सिकंदर की सेना से है। इनके अनुसार, सिकंदर की सेना के सैनिकों का एक समूह पोरस के साथ युद्ध के बाद ग्रीस लौट रहा था। वे लोग अपना रास्ता भटक गए थे। वे लद्दाख के दाहनु गांव पहुंचे और वहीं बस पर गए थे क्योंकि लद्दाख घाटी में सिर्फ वही इलाका उपजाऊ है। इस समुदाय पर नूरबू नाम के स्कॉलर ने गहन अध्ययन भी किया है। उनके मुताबिक, इस कबीले के लोग लद्दाख के आम लोगों से सांस्कृतिक, सामाजिक, शारीरिक और भाषाई आधार पर बिल्कुल अलग होते हैं।

कैसा होता है पहनावा, शारीरिक बनावट एवं रीति-रिवाज़ || What is the dress, physical appearance and customs like?

ड्रोकपा समुदाय के लोगों का रंग साफ होता है। स्त्री एवं पुरुषों दोनों के बाल लंबे और सुंदर होते हैं। इस समुदाय के लोगों की नाक नुकीली और होंठ मोठे होते हैं। इनकी वेषभूषा फ़ूलों से सुसज्जित और आभूषणों से जड़ी होती है। बसन्त ऋतु आने पर इस समुदाय के लोग कई दिनों तक नृत्य करते हैं। देवी-देवताओं के साथ-साथ गाय और बकरी की भी पूजा करते हैं। भगवान को खुश करने के लिए बलि भी चढ़ाते हैं। इनका पहनावा पारम्परिक होता है। इन्हें संगीत, आभूषण और शराब शौकीन मानते हैं। इस जनजाति के पुरूष कमरबंद और कमर पर  एक बड़ी ऊनी पोशाक पहनते हैं। वहीं बात करें महिलाओं की तो वो ढीला गाउन पहनती हैं। वैसे तो इन लोंगों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था लेकिन इनके रीति रिवाज़ हिन्दू धर्म से बहुत मेल खाते हैं।

गीत गाकर पुरुषों को संभोग के लिए करती हैं आकर्षित || Singing songs attract men for sex

ड्रोकपा जनजाति के लोग हर तीन सालों में बोनो-ना त्योहार मनाते हैं। ये त्योहार फ़सलों और महिलाओं की उर्वरता के लिए मनाया जाता है। इसी दौरान महिलाएं गीत गाकर पुरुषों को संभोग के लिए अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

Anchal Shukla

मैं आँचल शुक्ला कानपुर में पली बढ़ी हूं। AKTU लखनऊ से 2018 में MBA की पढ़ाई पूरी की। लिखना मेरी आदतों में वैसी शामिल है। वैसे तो जीवन के लिए पैसा महत्वपूर्ण है लेकिन खुद्दारी और ईमानदारी से बढ़कर नहीं। वो क्या है कि मैं लोगों से मुलाक़ातों के लम्हें याद रखती हूँ, मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहज़े याद रखती हूँ, ज़रा सा हट के चलती हूँ ज़माने की रवायत से, जो सहारा देते हैं वो कंधे हमेशा याद रखती हूँ। कुछ पंक्तिया जो दिल के बेहद करीब हैं। "कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये"

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