How to Make Kaju : अपनी हथेलियां ‘राख’ कर आपका काजू तराशती हैं ये लड़कियां
How to Make Kaju : हम जो काजू इतने स्वाद के साथ खाते हैं, वो बाजार में सीधा पेड़ से तोड़ कर नहीं आता है। काजू का जो कच्चा फल होता है वो खाने लायक नहीं होता है। इसलिए उसे प्रॉसेस करे बिना बाजार में नहीं बेचा जा सकता है। काजू का सफर पेड़ से घर तक तय होने से पहले उसकी प्रॉसेसिंग होती है जो कि कई स्टेज से गुजरती है। इसी प्रॉसेस को समझने के लिए आज हम आपको ट्रैवल जुनून में ये बताएंगे कि कैसे काजू प्रोसेस होता है और इसको बनाने वाले लोगों की जिंदगी कितनी खतरनाक होती है।
कहां से आया काजू|| Where did cashew nuts come from?
काजू मूल रूप से ब्राजीलियन नट है। ये साल 1550 के आसपास ब्राजील में राज कर रहे पुर्तगाली शासकों के द्वारा एक्सपोर्ट किया जाने लगा था। साल 1563 से साल 1570 के बीच मेंल पुर्तगाली ही इसे सबसे पहले गोवा में लाए थे और वहां पर इसका प्रोडक्शन शुरू करवाया था। वहां से ये पूरे साउथ ईस्ट एशिया में फैल गया था।
काजू की प्रोसेसिंग || cashew processing
काजू के पेड़ जंगलों में या फिर खेतों में उगाए जाते हैं, इनके फलों को कैश्यू एप्पल कहते हैं। इसके नीचे के भाग में एक किडनी की शेप की गिरी होती है। काजू का जो फल होता है वो अप्रैल और मई के महीनों में पक जाता है। इस मौसम में पेड़ों से पके हुए फलों को तोड़ लिया जाता है और फिर इन पके हुए फलों की छंटाई की जाती है।
पेड़ों से इन फलों को तोड़ने के बाद कैश्यू एप्पल यानी की काजू का जो फल होता है उसके नीच की तरफ लगी हुई किडनी शेप की गिरी को अलग किया जाता है। काजू की गिरी में से नमी को निकालने के लिए एसको अलग से 3 दिनों तक धूप में रखा जाता है। इस दौरान इन्हें रैग्यूलर रूप से पलटा जाता है ताकि ये गिरी अच्छे से सूख सकें। गिरी को सुखाने के बाद हाई प्रेशर या तापमान स्टीम के जरिये रोस्ट किया जाता है। आपको बता दें कि रोस्टिंग में जो समय लगता है वो गिरी के आकार पर ही निर्भर करता है।
गिरी का छिलका काफी ज्यादा कड़ा होता है, इसे खास हैंड और लेग ऑपरेटेड मशीनों से अलग किया जाता है ताकि अंदर का काजू ना टूटे। काजू की गिरी के अंदर CNSL (कैश्यू नट शैल लिक्विड) नाम का लिक्विड होता है जो कि काफी जहरीला होता है। अगर ये स्किन पर लग जाए तो इन्फेक्शन हो सकता है और बॉडी में जाने पर ये नुकसान कर सकता है।
काजू की गिरियों को एक खास तरह के गर्म चैंबर में 70 से 85 डिग्री के तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे इनमें मौजूद चिपचिपा लिक्विड उड़ जाता है। इसके बाद काजू की गिरियों को छोटी चाकू की मदद से छीला जाता है और इससे उनका ऊपर का छिलका निकाल दिया जाता है।
ऐसा करने के बाद काजू की छंटाई की जाती है और साइज, रंग और शेर के आधार पर काजू की 25 से ज्यादा ग्रेड बना दी जाती है। काजू की पैकिंग से पहले इसे सुगंधित धुएं से गुजारा जाता है और फिर एक क्लीनिंग लाइन में बचा हुआ कचरा साफ किया जाता है। आपको बता दें कि पैकिंग के दौरान काजू की एक बार फिर से छंटाई की जाती है और पैकिंग मैटिरियल में से हवा को निकाल कर कार्बन डाइओक्साइड और नाइट्रोजन को भरने के बाद पैक किया जाता है।
काजू बनाने वालों की जिंदगी || life of cashew makers
ये तो हुआ तरीका जिससे काजू बनता है लेकिन क्या आप जानते है कि इसे बनाने में जो लोग काम करते हैं उनके लिए ये कितना ज्यादा खतरनाक होता है। अपनी जिंदगी को खतरे में रख कर वो ये काजू बनाते हैं। काजू में हार्ड शेल की 2 परतें होती हैं, जिनके बीच में कास्टिक पदार्थ होता है जिसे कार्डोल और एनाकार्डिक एसिड के नाम से जाना जाता है।
ये काफी खतरनाक होता है और भयंकर जलन पैदा कर सकता है। भारत की काजू मार्केट में ये जलन 5 लाख से ज्यादा लोग लेते हैं, जिसमें ज्यादातर महिलाएं शामिल है। ये महिलाएं बिना किसी क़न्ट्रैक्ट के काम कर रही होती है। इनकी कमाई की कोई गारंटी नहीं होती और ना कोई पैंशन होती है ना किसी तरह की कोई अन्य सुविधा होती है।
कितनी महिलाओं को तो पहनने के लिए दस्ताने भी नहीं दिए जाते हैं, अगर मिलते भी है तो उससे उनका काम धीरे होता है। जब इनका दर्द जो है वो सहन करने की क्षमता से ज्यादा हो जाता है तो इन्हें दवाई की जरूरत होती है, जिसके लिए उन्हें पैसे कि जरूरत होती है।