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Nongriat Village में कैसे पूरा करें ट्रेक, यहां लें काम की जानकारी – Travel Blog

Nongriat Village में सुबह के बजे आंख खुल गई थी. हालांकि अलार्म 7 बजे का सेट था…लंबी ट्रेकिंग और मेहनत के बाद ये करिश्मा इसलिए हो सका क्योंकि बगल में रोहित एंड कंपनी रात भर जागते ही रहे थे. वह न जाने कौन सा गेम खेल रहे थे कि शोर पर शोर किए जा रहे थे. फिर भी, इस लकड़ी के हट में नींद आई, थोड़ी सी ही सही लेकिन इस छोटी सी नींद ने जैसे पूरी थकान उतार दी हो.

हम उठकर बाहर आए तो ऐसे लगा कि एक अलग दुनिया हो. शाम वाले माहौल से ये माहौल और भी जुदा था. बेहद खुशनुमा. बच्चे बोरे जैसा बैग टांगकर स्कूल जाते दिखाई दिए. कितना अच्छा होता है न, जब आधुनिकता हमसे दूर होती है. मुझे ऐसा ही लगा इस गांव को और यहां के गांववालों को देखकर. बेसिक, सिंपल लाइफ, कोई बाजारवाद नहीं… सब खुद में ही रमे हुए हैं.

नॉन्गरिअट गांव ( Nongriat Village ) में हम फ्रेश हो गए… कमाल की बात तो ये थी कि शिलॉन्ग के पास एक रात पहले ही कंपकंपी ने हमारे होश उड़ा दिए थे लेकिन यहां मौसम ऐसा था कि टीशर्ट भी भारी लग रही थी. क्या कुदरत है, सचमुच ये प्रकृति की ही माया है, कहीं धूप, तो कहीं छाया है…

गांव में अब चाय आई. सैंटीना जी के होमस्टे की चाय पी. फिर कुछ देर टहलते रहे. मेघालय में लोग सुपारी बहुत खाते हैं. बहुत ज्यादा ही… सैंटीना जी ने हमें छीलकर सुपारी खिलाई. पहले तो मुझे लगा था कि यहां ये कल्चर बिहार या यूपी से आया होगा, लेकिन ऐसा नहीं है, यहां हमेशा से ये कल्चर रहा है. लोग भोजन के बाद इसे जरूर खाते हैं.

अब आई विदा होने की बारी. जो शख्स पिछली रात हमारा बैग लेकर आए थे, वही वापस बैग लेकर हमारे साथ चल दिए, हमारे नए गाइड भी बनकर. यहां न चाहते हुए भी हमने जो सबसे अच्छा काम किया वो ये कि 7 बजे सुबह ही वापसी शुरू कर दी. यही हमारे ट्रिप का टर्निंग पॉइंट भी बना.

वापसी में हम नीचे की ओर आए, तो वही पुल मिला जिसे बंद किया हुआ था. ये उस पुल के बाद आया जिस पुल के दरवाजे पर जानबूझकर ताला मारा गया था. इस दूसरे पुल को लकड़ियां लगाकर बंद किया गया था. पिछले दिन हम इस पुल से जोखिम लेकर आए थे. एक एक आदमी ही एक बार में इसपर चल सकता है. लेकिन इस बार क्योंकि वो बैग वाले नए साथी हमारे साथ थे, तो उन्होंने नीचे से शॉर्टकट रास्ता दिखाया.

आहिस्ते आहिस्ते, चिड़ियों की आवाज सुनते जंगल की गोद में से हम गुजरते जा रहे थे. कई जगह बैठे, एक जगह नींबू पानी पिया… लेकिन उतना नहीं थके जितना एक दिन पहले हमने वापसी करते लोगों को देखा था. सच में. ऐसा भी कोई मुश्किल ट्रेक नहीं है ये.. हां सीढ़ियां हैं लेकिन मैंने तो लाठी डंडे भी नहीं लिए. पौने 9 बजे हम ट्रेक को पूरा कर चुके थे.

ट्रेक ( Nongriat Village Trek ) पूरा करते ही एक अलग सी खुशी दिल को छू गई. धूप निकलने से पहले हम सफर का एक पड़ाव पार कर चुके थे. कमाल की बात थी. अब हमारा अगला दौर था, बांग्लादेश बॉर्डर के हिस्से में जाने का… अगले ब्लॉग में आपको वहां की कहानी पढ़ने को मिलेगी. हमने बॉर्डर पर रह रहे बांग्ला मूल के परिवार के घर लंच किया. कमाल का अनुभव रहा वह भी.

अपना ध्यान रखिए… मिलते हैं अगले ब्लॉग में…

ये भी पढ़ें- Nongriat Village in Cherrapunji: न न करते रुक गए गांव में… मिला बेहतरीन खाना, बेहतरीन लोग

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